ध्यान पर ओशो का संदेश: ओशो के अनुसार ध्यान क्या है?

 “ध्यान कोई अभ्यास नहीं है, यह एक जीने का ढंग है। ध्यान कोई करने की चीज़ नहीं है, यह तो बस होने की अवस्था है।” – ओशो




जब भी हम "ध्यान" शब्द सुनते हैं, हमारे मन में कई छवियाँ उभरती हैं — कोई आँखें बंद किए बैठा है, कोई साँसों को गिन रहा है, कोई मंत्र जप रहा है। लेकिन ओशो के अनुसार ध्यान इन सबसे परे है।


ओशो के अनुसार ध्यान क्या है?

ओशो कहते हैं:

“ध्यान का अर्थ है – भीतर जागना। बस देखना, बिना किसी हस्तक्षेप के, बिना किसी चयन के – केवल देखना। यही साक्षी भाव है, और यही ध्यान है।”

ओशो ध्यान को किसी विशेष क्रिया के रूप में नहीं, बल्कि एक मौलिक अनुभव के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह केवल आंखें बंद करके बैठने से नहीं आता, बल्कि अपने हर क्षण को पूरी जागरूकता से जीने से उत्पन्न होता है।




ध्यान कोई तकनीक नहीं – यह समझ है

ओशो समझाते हैं कि ध्यान कोई तकनीक नहीं है जिसे सीखा जाए, बल्कि यह एक जागृति है जो भीतर घटती है। यह कोई लक्ष्य नहीं जिसे पाना है, यह तो वर्तमान में जीने की कला है।

“जब तुम पूरी तरह होश में हो, विचारहीन हो, तब ध्यान घटता है – और वह स्वतः घटता है।”

 



ओशो के अनुसार ध्यान की विशेषताएं:

  1. ध्यान सहज हैयह किसी विशेष स्थिति पर निर्भर नहीं करता।
  2. ध्यान क्रिया नहीं है यह अक्रियता में जागना है।
  3. ध्यान चेतना हैजिसमें आप अपने विचारों, भावनाओं और शरीर को देखते हैं, लेकिन उनमें उलझते नहीं।
  4. ध्यान पल–पल की जागरूकता हैकेवल बैठने का समय नहीं, बल्कि चलने, बोलने, खाने, हँसने का भी हिस्सा।



ओशो का साक्षी भाव

ओशो ध्यान की सबसे गहरी परिभाषा “साक्षी भाव” के माध्यम से देते हैं।

“तुम विचार नहीं हो, तुम मन नहीं हो। तुम देखने वाले हो – The Witness. यही तुम्हारा सत्य है। जो कुछ घट रहा है, उसे भीतर से देखना सीखो – बिना पक्ष लिए, बिना हस्तक्षेप किए।”

यही साक्षी भाव, ध्यान की शुरुआत है।




ओशो का संदेश: “ध्यान से ही क्रांति संभव है”

ओशो के अनुसार, दुनिया को बदलने की शुरुआत व्यक्ति को बदलने से होती है – और व्यक्ति केवल तब बदलता है जब वह अपने भीतर झाँकता है। ध्यान ही वह द्वार है, जिससे भीतर प्रवेश होता है।

“प्रेम ध्यान से उपजता है। करुणा ध्यान से फूटती है। मौन ध्यान से उतरता है। और चेतना का कमल ध्यान से खिलता है।”

 



ध्यान कोई प्रयत्न नहीं – यह एक समर्पण है

ओशो हमेशा कहते हैं कि ध्यान पाने की कोई दौड़ नहीं है। यदि तुम इसे पाना चाहो, तो खो दोगे। और जब तुम पूरी तरह समर्पित होकर बस हो जाते हो, तो ध्यान स्वतः घटता है।




ओशो की ध्यान विधियाँ – एक आधुनिक उपहार

ध्यान को केवल शास्त्रों में न रखकर, ओशो ने उसे आधुनिक मनुष्य के लिए डायनामिक, कुंडलिनी, नादब्रह्म, चक्र ब्रीदिंग, मंडला, घूमना, साइलेंस सिटिंग, और विपश्यना जैसी सैकड़ों विधियों में ढाला।
यह ध्यान विधियाँ शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करती हैं और धीरे-धीरे साधक को शुद्ध साक्षीभाव की ओर ले जाती हैं।




निष्कर्ष: ध्यान जीना है, करना नहीं

ओशो का संदेश स्पष्ट है:

"Be Watchful. Be Aware. That's all meditation is."

ध्यान कोई कठिन साधना नहीं, यह जीवन के हर पल में होशपूर्वक उपस्थित रहने का नाम है।

तो आज से, अभी से, इस क्षण से –
जो कुछ हो रहा है, उसे बिना बाधा, बिना निर्णय, सिर्फ देखो।
यही देखना… ध्यान है।




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